‘Bewafa Tu Nahi’ poem is a soft, aching whisper of love that still lingers even when the person is drifting away. It’s not about betrayal — it’s about emotional distance, the quiet separation that happens even when the words of love are still spoken.
For anyone who has ever watched love fade from the other side, who stood at the same spot long after someone walked away — this poem speaks your heart.
It’s about acceptance, unspoken pain, and the silent strength to let go without bitterness.

बेवफ़ा तू नहीं
बेवफ़ा तू नहीं है,
ये जानती हूँ मैं।
पर न जाने क्यों ऐसा लगता है,
कि तेरी ज़िन्दगी में शामिल नहीं हूँ मैं।
जैसे तू वजह ढूँढ रहा है,
मुझसे दूर रहने के लिए।
जैसे तू वजह ढूँढ रहा है
मुझसे बात न करने के लिए।
अब तुझे शाम होने का इंतज़ार नहीं रहता,
हम एक-दूसरे से दूर जा रहे हैं,
ये तुझे दिखायी नहीं दे रहा ।
मोहब्बत का इज़हार तो आज भी करता है तू,
पर उस इज़हार में ज़िन्दगी का एहसास नहीं होता।
मैं तेरा हाथ थामना चाहती हूँ,
सारी ग़लतफ़हमियों को पीछे छोड़।
तेरे साथ आगे बढ़ना चाहती हूँ,
पर शायद तू कब का आगे बढ़ गया है।
जिस शाख़ से मुझे मोहब्बत थी,
वो मुझे अकेला छोड़,
भीड़ में कहीं खो गया है।
दिल में बहुत दर्द है ये देखकर,
रेत-सा सब कुछ फिसलता महसूस कर,
पर मैं अकेली कुछ नहीं कर सकती।
तू अगर जाना चाहता है,
तो तुझे रोक नहीं सकती।
शायद मेरी क़िस्मत में यही लिखा था,
मोहब्बत बीच राह में छोड़ जाएगी।
एक अधूरी कहानी जो कभी ख़ूबसूरत थी,
ये दास्तां मेरे ज़ेहन में बस जाएगी ।
हो सकता है कल बस मैं एक निशान ही रहूँ,
तेरी यादों में।
मेरी मोहब्बत को तू भूलकर आगे बढ़ेगा,
राहों में ।
पर मैं फिर भी वही खड़ी रहूँगी शायद,
जहाँ से मोहब्बत का आग़ाज़ हुआ,
जहाँ से मोहब्बत का अंजाम मिला था।
पर शायद तेरी मुन्तज़िर नहीं रहूँगी,
ज़िन्दगी ने जो भी सबक दिया,
उसे आँखें खोल कबूल करूँगी।
Naseema Khaton
BEWAFA TU NAHI
Also Read – TUJHSE MOHABBAT KARNA
Check out my book ‘THE TREE AND THE WIND’ on Kindle

Check out my book ‘ISHQ-E-SAFAR’ on Amazon

Please follow and like us: