‘Kya Hasil Kiya Tumne’ heartfelt poem explores the journey of resilience and self-discovery after enduring pain and setbacks. It reflects the courage to keep moving forward despite challenges, learning to stand tall, and slowly moving toward success. Perfect for anyone who has faced struggle but refuses to give up on their dreams.

क्या हासिल किया तुमने
आखिर तुमने भी क्या हासिल कर लिया
इतना वक्त बीत गया,
तुमने क्या बनाया अपना?
ये अल्फाज़, तीर की तरह चुभे उसके दिल में,
तंज भरा हुआ जवाब था ये,
जो सिर्फ उसकी नाकामी को देख रहा था
कोई और होता तो शायद इतना दर्द नहीं होता,
पर वो अपनी थी,
इसलिए दिल अंदर तक छल गया था
और फिर, खुद से एक सवाल किया—
"वाकई... क्या हासिल किया है मैंने?
क्या बन पाई हूँ मैं?"
जिस मंजिल की तलाश में निकली थी,
क्या मैं वहाँ पहुँच पाई हूँ?
फिर उसने पीछे मुड़ कर देखा
सफर लंबा था, कांटों से भरा,
कई बार लहू बहा, कई बार ज़ख्म मिले
लड़कड़ाते-लड़कड़ाते,
आखिर उसने चलना सीख ही लिया।
पहले बातों में नमी आ जाती थी,
अब अपनी सोच रखती है खुल कर,
बेझिझक सवाल करती है,
ज़ुबान नहीं लड़खड़ाती अब
जिस समुंदर में डूबने से डर लगता था,
आज उस समुंदर में तैर सकती है
हाँ, गोते नहीं लगाए उसने,
पर अपना वजूद बचाकर रखा है।
हाँ, शायद अब तक कुछ खास हासिल नहीं किया,
पर चलना सीख गई है,
और धीरे-धीरे,
मंजिल की तरफ बढ़ रही है
वक्त लगेगा, पर वक्त से लड़ना आ गया है उसे
दुनिया भी देखेगी उसकी कामयाबी,
और खुली आँखों से वो खुद भी
वो मंज़र देख रही है
Naseema Khatoon
KYA HASIL KIYA TUMNE
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